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________________ ( २२२) बात को दृष्टि में रखकर ही जैन-शास्त्रों ने ब्रह्मचर्य का भी ऊंचे से ऊंचा और नीचे से नीचा ऐसे दोनों ही प्रकार के आदर्श बताये हैं । ब्रह्मचर्य के सबसे ऊंचे आदर्श का नाम, सर्वविरति ब्रह्मचर्य है और उससे नीचे आदर्श का नाम देशविरति ब्रह्मचर्य है, देशविरति ब्रह्मचर्य अर्थात् आंशिक ब्रह्मचर्य । विवाहित पुरुष-स्त्री भी देश विरति ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन भली भांति कर सकते हैं । बल्कि देशविरति ब्रह्मचर्य को स्वीकार करना, धार्मिक एवं नैतिक-दृष्टि से प्रत्येक पुरुष स्त्री का कर्तव्य है । देशविरति ब्रह्मचर्य को स्वीकार करने से विवाहित स्त्री-पुरुष के सांसारिक कामों में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती क्योंकि सर्वविरति ब्रह्मचर्य में मैथुनाङ्गों सहित सब प्रकार के मैथुन का मन, वचन और काय से करने, कराने और अनुमोदन करने का त्याग लिया जाता है । लेकिन देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत का आदर्श, इससे बहुत नीचा है । देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत स्वीकार करने वाला जो प्रतिज्ञा करता है, वह इस प्रकार होती है: सदारसंतोसिए अवसेसं मेहुणं पचक्खामि जावजीवाए (देवदेवीसम्बन्धी) दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा, मनुष्यमनुष्यणी एवं तियंचतियंचणी सम्बन्धी एकविहं एगविहेणं न करेमि कायसा इस प्रतिज्ञा के अनुसार देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत स्वीकार करने वाले पुरुष या स्त्री के लिए सांसारिक काम न
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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