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७- एक प्रश्न
श्राजकल समाज के सम्मुख विधवा-विवाह का जो प्रश्न उपस्थित है, उसके मूल कारण बाल-विवाह, बेजोड़ - विवाह और विवाह की खर्चीली पद्धति ही हैं । बाल-विवाह एवं बेजोड़ - विवाह के कारण एक ओर तो विधवाओं की संख्या बढ़ जाती है और दूसरी ओर बहुत से पुरुष अविवाहित ही रह जाते हैं । इसी प्रकार विवाह की खर्चीली पद्धति के कारण भी अनेक गरीब परन्तु योग्य युवक भी अविवाहित रह जाते हैं क्योंकि उनके पास वैवाहिक आडम्बर करने को द्रव्य नहीं होता । यदि बाल-विवाह और बेजोड़ विवाह बन्द हो जावें, विवाहों में अधिक खर्च न हुआ करे, तो विधवाओं और अविवाहित पुरुषों की बढ़ी हुई संख्या न रहने पर सम्भवतः विधवाविवाह का प्रश्न आप ही हल हो जाय ।
सारांश यह कि पूर्व समय में विवाह तब किया जाता था, जब पति-पत्नी सर्वविरति - ब्रह्मचर्य पालने में अपने को असमर्थ मानते थे, अर्थात् विवाह कोई आवश्यक कार्य नहीं समझा जाता था; लेकिन आजकल विवाह एक आवश्यक कार्य माना जाता है । जीवन की सफलता विवाह में ही समझी जाती है । जब तक लड़के लड़की का विवाह न हो जाये, तब तक वे दुर्भागी समझे जाते हैं । इसी कारण आवश्यकता और अनुभव के बिना ही विवाह कर दिया जाता है और वह भी बेजोड़ तथा हजारों लाखों रुपये व्यय करके धूमधाम के साथ । पूर्व समय की विवाह प्रथा समाज दुराचार से बचाती थी समाज का हित साधन
में शान्ति रखती थी, समाज को और अच्छी सन्तान उत्पन्न करके