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बहुत वर्ष तक रौरव नरक में निवास करके विष्टारहता है ।'
-मूत्र खाता
आधुनिक अनमेल विवाह प्रथा की और भी बहुत समालोचना की जा सकती है लेकिन विस्तार भय से ऐसा नहीं किया गया । यहां तो संक्षेप्त में केवल यह बताया गया है कि आजकल की विवाह प्रथा पहले की विवाह - प्रथा से बिल्कुल भिन्न है और इस भिन्नता से अनेक हानियां हैं।
६ - विवाह में अपव्यय
अधिकांश आधुनिक विवाहों में अपव्यय भी सीमातीत होता है । ग्रातिशबाजी, रण्डी, बाजे, बारात और ज्ञातिभोजनादि में इतना अधिक द्रव्य उड़ाया जाता है कि जितने द्रव्य से सैकड़ों-हजारों लोग वर्षों तक पल सकते है । धनिक लोग विवाह के अपव्यय द्वारा गरीबों के जीवन-मार्ग में कांटे बिछा देते हैं । धनिकों के ग्राडम्वर - पूर्ण विवाह को आदर्श मानकर अनेक गरीब भी कर्ज लेकर विवाह का आडम्बर करते हैं और धनिकों द्वारा स्थापित इस ग्रादर्श की कृपा से अपने जीवन को चिरकाल के लिए दुःखी बना लेते हैं । विवाह के अपव्यय में धन की ही हानि नहीं होती, किन्तु कभी कभी जन की भी हानि हो जाती है । बहुत से लोग खाने-पीने की अनियमितता से बीमार होकर मर जाते हैं और बहुत से प्रातिशबाजी की अग्नि में झुलस कर विवाह की भेंट हो जाते हैं । कई युवक विवाह में आई हुई वेश्याओं के हो शिकार बन जाते हैं । इस प्रकार आजकल की विवाह पद्धति द्वारा अपना ही सर्वनाश नहीं किया जाता, किन्तु दूसरों के सर्वनाश का भी कारण उत्पन्न कर दिया जाता है।