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( २१७) हानियां बताई जाती हैं । बेजोड़ विवाह से कुल की हानि होती है । विधवाओं की संख्या बढ़ती है, जिसमें व्यभिचारवृद्धि के साथ ही आत्महत्या, भ्र ण-हत्या आदि होती रहती हैं और अन्त में अनेक विधवाएं वेश्या बन कर अपना जीवन घृणित रीति से बिताने लगती हैं । समाज में स्त्रियों की कमी होने से कई युवक अविवाहित रह जाते हैं और दुराचारी बन जाते हैं । बेजोड़ पति-पत्नी से उत्पन्न सन्तान भी अशक्त, अल्पायुषी और दुर्गुणी होती है ।
जैन-शास्त्रों में ऐसा एक भी प्रमाण नहीं मिलता, जो बेजोड़ विवाह का पोषक हो । अन्य ग्रन्थों में भी बेजोड़ विवाह का निषेध ही किया गया है । जैसे:
कन्या यच्छति वृद्धाय नीचाय धनलिप्सया । कुरूपाय कुशीलाय स प्रेतो जायते नरः ।।
स्कन्दपुराण । 'जो पिता अपनी कन्या-वृद्ध, नीच, घन के लोभी, कुरूप और कुशील पुरुष को देता है वह प्रेत-योनि में जन्म लेता है।
इसी प्रकार कन्या-विक्रय के विषय में कहा है:अल्पेनापि हि शुल्केन पिता कन्यां ददाति यः । रौरवे बहु वर्षारिण पुरीषं मूत्रमश्नुते ॥
आपस्तम्ब स्मृति । 'कन्या देकर बदले में थोड़ा भी धन लेने वाला पिता