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________________ ( २१५ ) कई माता-पिता, लोभ के वश होकर अपनी सन्तान का हिताहित नहीं देखते और उसका विवाह ऐसे वर या ऐसी कन्या के साथ कर देते हैं । कई माता-पिता अपनी अबोध कन्या को वृद्ध तक के गले मढ़ देते हैं। विशेषतः वे धन के लिए ही ऐसा करते हैं, यानी कन्या के बदले में द्रव्य लेने के लिए । द्रव्य-लालसा के आगे वे इस बात को विचारने की भी आवश्यकता नहीं समझते कि इन दोनों में परस्पर मेल रहेगा या नहीं तथा हमारी कन्या, कितने दिन सुहागिन रह सकेगी ? उन्हें तो केवल द्रव्य से काम रहता है, उनकी तरफ से कन्या की चाहे कैसी ही दुर्दशा क्यों न हो ! विवाह और पत्नी के इच्छुक वृद्ध भी यह नहीं देखते कि मैं इस तरुणी के योग्य हूँ या नहीं और यह तरुणी मुझे पसन्द है या महीं ! विद्वानों का कथन है वृद्धस्य तरुणी विषम् । -सूक्ति । _ 'वृद्ध के लिए तरुणी विष के समान है ।' इसका उल्टा यह होगा कि तरुणी को वृद्ध विष के समान लगता है । जब पति-पत्नी एक दूसरे को विष के समान बूरे लगते हों तब उनका जीवन सुखमय कैसे बीत सकता है ? लेकिन इस बात पर न तो धन-लोभी मातापिता ही विचार करते हैं, न स्त्री-लोभी वृद्ध और न भोजनलोभी बराती या पंच । केवल धन के बल से एक वृद्ध उस तरुणी पर अधिकार कर लेता है, जिसका अधिकारी एक युवक हो सकता था और इसी प्रकार माता-पिता की धन
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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