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हैं कि बाल-विवाह के कारण प्रकृति द्वारा कौनसा दण्ड मिलता है यानी बाल विवाह से क्या क्या हानि होती है।
युवावस्था से पूर्व, स्त्री-पुरुष का रज - वीर्य अपरिपक्व रहता है । बाल-विवाह और समय से पूर्व दाम्पत्य सहवास से अपरिपक्व रज- वीर्य नष्ट होता है । अपरिपक्व रज- वीर्य नष्ट होने से शरीर की रस से लेकर मज्जा तक सभी धातुयें शिथिल हो जाती हैं; जिससे शारीरिक विकास रुक जाता है । सौन्दर्य, प्रसन्नता और अंगों की शक्ति घट जाती है । आयुर्बल भी कम हो जाता है । रोग-शोक घेरे रहते हैं । असमय में ही दांत गिर जाते हैं, बाल पकने लगते हैं तथा प्रांखों की ज्योति क्षीण हो जाती है । थोड़े ही दिनों में पुरुष नपुंसक और स्त्री स्त्रीत्व-रहित हो जाती है । इस प्रकार पति-पत्नी का जीवन दुःखमय हो जाता है ।
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ऊनषोडशवर्षायाम अप्राप्तः पंचविशतिम | यद्याधते पुमान् गर्भं कुक्षिस्थः स विपद्यते || जातो वा न चिरञ्जीवेज्जीवेद्वा दुर्बलेन्द्रियः । तस्मादत्यन्तबालायां गर्भाधानं न कारयेत् ॥
सुश्रुत
'यदि सोलह वर्ष से कम अवस्था वाली स्त्री में, २५ वर्ष से कम अवस्था वाला पुरुष गर्भाधान करे तो वह गर्भ उदर में ही नाश को प्राप्त होता है । यदि उस गर्भ से सन्तान उत्पन्न भी हुई तो जीवित नहीं रहती है और जीवित भी रही तो अत्यन्त दुर्बल ग्रंग वाली होती है । इसलिये कम आयु वाली स्त्री में कभी गर्भाधान न करना चाहिए ।'