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________________ ( २०६) एक पाठ प्रमाण-रूप बताते हैं, मनुस्मृति और हेमाद्रि के उक्त प्रमाणों से बाल-विवाह का विधान करने वाला वह पाठ प्रक्षिप्त ठहरता है । जान पड़ता है कि यह पाठ उस समय बनाया गया है जब भारत में मुसलमानों का जोर था और वे लोग स्त्रियों और विशेषतः अविवाहित युवतियों का बलात् अपहरण करते थे । मुसलमानों से स्त्रियों की रक्षा करने के लिए ही, सम्भवतः यह पाठ बनाया गया था; क्योंकि मुसलमान लोग विवाहित स्त्रियों की अपेक्षा अविवाहितस्त्रियों का अपहरण अधिक करते थे। इसलिये विवाह हो जाने पर स्त्रियां इस भय से बहुत कुछ मुक्त समझी जाती थीं। यद्यपि मुसलमानी काल में बाल-विवाह की प्रथा प्रचलित अवश्य हो गई थी, लेकिन अाजकल की भाँति, अल्पवयस्क पति-पत्नी को विवाह-समय में ही सहवास नहीं कराया जाता था । किन्तु सहवास का समय विवाह-समय से भिन्न होता था । आज मूसलमान काल की सी स्थिति न होने पर भी बाल-विवाह प्रचलित है और सहवास की भी कोई निश्चित अवस्था नहीं है । तात्पर्य यह है कि बाल-विवाह किसी भी धर्म के शास्त्रों में उचित या आवश्यक नहीं बताया गया है। किन्तु ऐसे विवाहों का निषेध ही किया गया है । ३-बाल-विवाह से हानि वाल-विवाह द्वारा प्राचीन विवाह-नियम भंग करने वालों को प्रकृति-दत्त दण्ड भी भोगना पड़ता है । प्रकृति अपने नियम भंग करने वाले के साथ किचित् भी नर्मी का व्यवहार नहीं करती, किन्तु दण्ड देती है । अतः अब यह देखते
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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