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( २०८ ) कोठरी में भी बन्द कर देते हैं । उन बाल-बालिका में प्रारम्भ से ही ऐसे संस्कार डाले जाते हैं, जिनके कारण वे अयोग्य अवस्था में ही मैथुन से स्नेह करने लगते हैं । इस प्रकार के संस्कारों में यदि कुछ कमी रह जाती है तो उसकी पूर्ति, विवाह समय के गीतों से पूरी हो जाती है और वे बालक-बालिका अपने माता-पिता की पोते-पोती विषयक लालसा पूरी करने के लिए दुर्विषय-भोग के अथाह सागर में अशक्त होते हुए भी कूद पड़ते हैं ।
२-धार्मिक दृष्टि से बाल-विवाह कुछ लोगों ने वाल-विवाह की पुष्टि के लिए, धर्म की भी ओट ले रखी है और बालविवाह न करना, धार्मिक दृष्टि से अपराध बतलाया जाता है । लेकिन जो लोग, बालविवाह को धामिक रूप देते हैं, उन्हीं ग्रन्थों में लिखा है
अज्ञातपतिमर्यादामज्ञातपतिसेवनाम् । नोद्वाहयेत्पिता बालामज्ञातधर्मशासनाम् ।।
–हेमाद्रि । 'पिता, ऐसी कम अवस्था वाली कन्या का विवाह कदापि न करे, जो पति की मर्यादा, पति की सेवा और धर्मशासन को न जानती हो ।'
इसके सिवा आवश्यक ब्रह्मचर्य के विषय में मनुस्मृति का जो प्रमाण दिया गया है, उससे भी बाल विवाह का निषेध ही होता है । बाल-विवाह न करने को धार्मिक अपराध बताने वाले लोग, 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी' आदि का जो