SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०६ ) साथ खेला करते होंगे और विवाह तथा वधू किस जानवर का नाम है, अपनी बुद्धि से यह भी न जानते होंगे । उन्हें घोड़े पर और मण्डप के नीचे उसी प्रकार बैठा दिया गया होगा, जिस प्रकार मन्दिरों में मूर्तियाँ बैठा दी जाती हैं । जब ब्राह्मण लोग, पति-पत्नी के परस्पर के वचनों का पाठ कर रहे होंगे, तब वे नाई और नाईन की गोदी में सो रहे होंगे । जब उन्हें भांवरें दिलाई जाती होंगी - यानी फेरे दिये जाते होंगे-तब वे अपने पैरों से नहीं, किन्तु नाई या नाइन के पैरों से चलते रहे होंगे । ऐसी दशा में वे विवाह की बातें जानें और बता तो कहां से ? , एक सज्जन कहते थे कि मुझे एक विवाह में सम्मिलित होने का मौका मिला । उस विवाह में पति और पत्नी दोनों ही अल्पवयस्क थे। रात के समय जब कि विवाह हो रहा था-कन्या मण्डप में ही सो गई। लग्न के समय, कन्या को मां ने जगाते हुए कहा कि वेटी ! उठ, तेरा लग्न करें। लड़की की अवस्था ऐसी थी कि वह 'लग्न' शब्द को ही न जानती थी । मां के जगाने पर लड़की ने मां से कहा कि-मुझे तो नींद आती है, तू अपना ही लग्न करले! यह कहकर लड़की फिर सो गई और अन्त में उसका विवाह निद्रावस्था में ही हया । विचारने की बात है कि जो बालक-बालिका लग्न या विवाह का नाम भी नहीं जानते, उनका विवाह कर देने पर, वे विवाह सम्बन्धी नियमों का पालन किस प्रकार कर सकेंगे ? उन्हें जब अपने विवाह का ही पता नहीं है, तब वे विवाह विषयक प्रतिज्ञानों को क्या जाने और उनका पालन कैसे करें ? सच्ची बात तो यह है कि इस प्रकार
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy