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________________ ( २०५ ) पुरुष-स्त्री, युवक-युवती होने के बदले, बालक-बालिका का हो विवाह किया जाता है। अधिकांश बालक-बालिका के माता-पिता अपने बच्चों का विवाह ऐसी अवस्था में कर देते हैं, जबकि वे बच्चे विवाह की आवश्यकता, उसकी जबरदस्ती और उसका भार समझने के लिये अयोग्य ही नहीं, किन्तु इस ओर से अनभिज्ञ ही होते हैं । यद्यपि बालकबालिकाओं की वह अवस्था, खेलने-कूदने योग्य है, लेकिन उनके माता-पिता उन बच्चों के अन्य-अन्य खेल-कूद देखने के साथ ही साथ, विवाह का खेल देखने की लालसा से अपने दूधमुहे बच्चे के जीवन का सर्वनाश कर देते हैं । ___ अभागे भारत में, ऐसे-ऐसे बालक-बालिकाओं के विवाह सुने जाते हैं, जिनकी अवस्था एक वर्ष से भी कम होती है । अपने बालक या वालिका को दूल्हे या दुल्हिन के रूप में देखने को लालायित मां-बाप, अपनी जवाबदारी और सन्तान की भावी उन्नति सब को बाल-विवाह की अग्नि में भस्म कर देते हैं । अपने क्षणिक सुख के लिए अपने अबोध बालकों को भोग की धधकती हुई ज्वाला में भस्म होने के लिए छोड़ देते हैं और अपनी संन्तान को उसमें जलते देख कर भी आप खड़े खड़े हंसते तथा यह अवसर देखने को मिला, इसके लिए अपना अहोभाग्य मानते हैं । आज के अधिकांश लोगों को यह भी पता नहीं है कि हमारा विवाह कब, किस प्रकार और किस विधि से हना था; तथा विवाह के समय हमें कौनसी प्रतिज्ञाएं करनी पड़ो थीं। उन्हें पता भी कहां से हो ? वे जाने भी तो कैसे ? उनका विवाह तो तब हुआ होगा, जब वे मां की गोद में बैठकर दूध पीया करते होंगे, नंगे शरीर बच्चों के
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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