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में जिसका दुष्प्रभाव अपने आप पर ही नहीं, किन्तु भावी सन्तान या दूसरे लोगों पर भी पड़ता है, उसमें सहायता करना, नैतिक, सामाजिक और धार्मिक, तीनों ही दृष्टियों से अपराध है । उदाहरण के लिए सन्तान के बालक होने (पर्याप्त प्राय की न होने) पर भी, पूरुष का स्त्री को और स्त्री का पुरुष को प्रसन्न करने के लिए - उसकी इच्छा पूरी करने के लिए-मैथुन में प्रवृत्त होना । ऐसा करने से एक छोटे बालक की माता गर्भवती हो सकती है, जिससे उस छोटे बालक का विकास मारा जाता है, उसे रोग घेर लेते हैं और गर्भ का बालक भी पुष्ट नहीं होता किन्तु क्षीण दशा में पहुंचता जाता है। इस प्रकार दोनों ही बालकों का जीवन कष्टमय हो जाता है । इसलिए ऐसे कार्यों में दम्पती का एक दूसरे की सहायता करना भी अपराध ही है ।
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