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(२०१) वीर्यवन्तं सुतं सूते ततो न्यूनाब्दयोः पुनः । रोग्यल्पायुरधन्यो वा गर्भो भवति नैव वा ॥
५ वां स्थान, २ रा उ । 'जिसकी अवस्था १६ बर्ष की हो चुकी है, ऐसी स्त्री और जिसकी अवस्था २० वर्ष की हो चुकी है, ऐसे पुरुष से मिलने पर और रक्त, वीर्य वाय, गर्भाशय-मार्ग तथा हृदय शुद्धि होने पर, वीर्यवान पुत्र उत्पन्न करती है । इससे कम अवस्था वाली स्त्री यदि कम अवस्था वाले पुरुष से संगम करे तो रोगी. अल्पायुषी तथा आलसी सन्तान उत्पन्न करती है या गर्भाधान ही नहीं होता।'
यद्यपि यह कहने वाले टीकाकार ने पुरुष की अवस्था २० वर्ष की ही बताई है, लेकिन स्त्री की अवस्था तो १६ वर्ष ही कही है । अर्थात् जितने भी प्रमाण दिये गये हैं, उन सब से स्त्री की विवाह योग्य अवस्था १६ वर्ष से अधिक ही ठहरती है; कम नहीं । इस प्रकार पुरुष का विवाह २० या २५ वर्ष और स्त्री का विवाह १६ वर्ष की या इससे अधिक अवस्था में ही हो सकता है, कम अवस्था में नहीं । कम अवस्था में विवाह होने पर क्या हानि होती है, यह वात आगे बताई गई है ।
-विवाह की संख्या प्रकृति पर दृष्टिपात करने से यह बात स्पष्ट है कि एक पुरुष एक ही स्त्री के साथ और एक स्त्री एक ही पुरुष के साथ विवाह कर सकती है, अधिक के साथ नहीं । यद्यपि जैन-शास्त्रों में और अन्य ग्रन्थों में अधिक विवाह की बातें