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( २०० ) अपने २ विषय को ग्रहण करने की इच्छा उत्पन्न हो गई है, जो अठारह देश की भाषाओं में विशारद है, गाने में, रति-क्रीडा में, गन्धर्व-कला में और नाटयकला में कुशल है, अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रणयुद्ध, बाहुयुद्ध साहसी एवं निपुण और काम-भोग भोगने में समर्थ हो गया है (उसका विवाह हुआ।)'
इस पाठ से पुरुष की विवाह योग्य अवस्था पर बहुत अधिक प्रकाश पड़ता है । भगवती सूत्र में भी विवाह का वर्णन करते हये पति-पत्नी की समानता किन बातों में देखी जाती थी, यह बताया गया है । उसमें कहा है:
सरिसयारणं सरित्तयारणं सरिव्वयारणं सरिसखावनरूपज़ोव्वण-गुणोववेयाणं सरिसयारणं कुलेहितो प्रामिल्लियाणं
___'समान योग्यता वाली, समान त्वचा वाली, समान आयु वाली, समान लावण्य रूप यौवन और गुण वाली समान कुल की (कन्या के साथ विवाह हुआ ।)'
इसके अनुसार, विवाह समान युवावस्था में ही हो सकता है । यद्यपि उक्त प्रमाण में समान आयू भी बतलाई गई है, लेकिन उसके साथ ही, समान यौवन भी कहा गया है और ऊपर वैद्यक ग्रन्थ का हवाला देकर यह भी बताया जा चुका है कि २५ वर्ष की अवस्था का पुरुष तथा १६ वर्ष की अवस्था की स्त्री समान हैं । स्थानांग सूत्र की टीका में भी कहा गया है:
पूर्णषोडशवर्षा स्त्री पूर्णविशेन संगता । शुद्ध गर्भाशये मार्गे रक्त शुक्रेनिलं हृदि ॥ .