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________________ ( १६८ ) ही एक ने दूसरे को स्वीकार कर लिया हो एवं जिसमें देश प्रचलित विवाह - विधि पूरी न की गई हो, उसे गन्धर्वविवाह कहते हैं। यह विवाह, देवविवाह की अपेक्षा मध्यम और राक्षस विवाह की अपेक्षा अच्छा माना जाता है । राक्षस - विवाह उसे कहते हैं, जिसमें वर और कन्या, एक दूसरे को समान रूप से न चाहते हों, किन्तु एक ही व्यक्ति दूसरे को चाहता हो, जिसमें समानता का ध्यान न रक्खा गया हो, जो किसी एक की इच्छा और दूसरे की अनिच्छापूर्वक जवरदस्ती या अभिभावक की स्वार्थ-लोलुपता से हुआ हो और जिसमें देश-प्रचलित उत्तम विवाह - विधि को ठुकराया गया हो तथा वैवाहिक नियम भंग किये गये हों । यह विवाह उक्त दोनों विवाहों से निकृष्ट माना जाता है । ८- विवाह योग्य अवस्था पहले वताया जा चुका है कि कम से कम आयु का चौथा भाग, यानि २५ र १६ वर्ष की अवस्था तक तो पुरुष - स्त्री को अखण्ड - ब्रहमचर्य का पालन करना ही चाहिये । इसके अनुसार विवाह की अवस्था २५ वर्ष और १६ वर्ष से कम नहीं ठहरती है । किसी भी ग्रन्थ में विवाह वय और सहवासवय का अलग उल्लेख नहीं पाया जाता, किन्तु विवाह और सहवास के एक ही साथ होने का प्रमाण मिलता है अर्थात् वही विवाह वय औौर वही सहवासवय । वैद्यक - ग्रन्थ कहते हैं पंचविशे ततो वर्षे पुमान् नारी तु षोडशे । समत्वाऽगतवीयाँ तो जानीयात् कुशलो भिषक् ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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