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________________ ( १९६ ) ७- विवाह विषयक अधिकार । विवाह रूपी श्राजीवन साहचर्य, ऐसे स्त्री-पुरुष का होता है, जो स्वभाव, गुण, आयु, बल, वैभव, कुल और सौन्दर्य आदि को दृष्टि में रखकर, एक दूसरे को पसन्द करे । स्त्री - पुरुष में से किसी एक की पसन्दगी पर विवाह नहीं होता है, किन्तु दोनों की पसन्दगी से किया हुआ विवाह ही, विवाह के अर्थ में माना जा सकता है । किसी एक की इच्छा और दूसरे की अनिच्छा पर होने वाला विवाह, विवाह नहीं है । विवाह बन्धन स्त्री और पुरुष दोनों की स्वेच्छा पर ही निर्भर है । विवाह सम्बन्ध स्थापित करने में पुरुष और स्त्री के अधिकार समान ही हैं । अर्थात् जिस प्रकार पुरुष, स्त्री को पसन्द करना चाहता है, उसी प्रकार स्त्री भी पुरुष को पसन्द करने की अधिकारिणी है। बल्कि इस विषय में स्त्रियों के अधिकार पुरुषों से भी अधिक हैं । स्त्रियां अपने लिए वर पसन्द करने को स्वयम्बर करती थी, ऐसे प्रमाण तो जैन - शास्त्र और अन्य ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर मिलते हैं, लेकिन पुरुषों ने अपने लिए स्त्री पसन्द करने को स्वयम्बर की ही तरह का कोई स्त्री - सम्मेलन किया हो, ऐसा प्रमाण कहीं नहीं मिलता । इस प्रकार पूर्वकाल में स्त्री की पसन्दगी को विशेषता दी जाती थी । फिर भी यह बात नहीं थी कि जिस पुरुष को स्त्री पसन्द करे, पुरुष के लिए उसके साथ विवाह करना आवश्यक हो । स्त्री के पसन्द करने पर भी, यदि पुरुष की इच्छा उसके साथ विवाह करने की नहीं है, तो विवाह करने से इन्कार कर देना, कोई नैतिक या
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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