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और इस उद्देश्य के साधक कारणों को ही प्रोत्साहन दिया जाता । अहिंसा, सत्य अस्तेय, आदि सिद्धान्त इस उद्देश्य में बाधक माने जाते । इसलिए इन्हें समूल नष्ट किया जाता, जिससे संसार में अशान्ति छा जाती और हाहाकार मच जाता । तात्पर्य यह कि यदि विवाह को केवल विषय-भोग के लिये ही माना जाये, तब भी नैमित्तिक-सम्बन्ध की प्रथा होने पर सांसारिक-जीवन शान्तिपूर्वक न बीत सकता ।
६-विवाह विषय-भोग के लिये नहीं है ।
वास्तव में विवाह दुर्विषय-भोग के लिये नहीं है। किन्तु वह मचर्य-पालन की कमजोरी को धीरे-धीरे मिटाकर, ब्रहमचर्य-पालन की पूर्ण क्षमता प्राप्त करने के लिए ही है। यदि प्रतिक्षण बढ़ने वाली दुर्विषय-भोग की लालसा को बिना विवाह किये ही विवेक से दबाने की शक्ति हो तो विवाह करने की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती । इस शक्ति के अभाव में ही विवाह किया जाता है। जिस प्रकार यदि आग न लगने दी गई, या लगने पर तत्क्षण बुझा दी गई, तब तो दूसरा उपाय नहीं किया जाता और तत्क्षण न बुझा सकने पर, बढ़ जाने पर-उसकी सीमा करके उसे बुझाने का प्रयत्न किया जाता है । इसके लिए जिस मकान में आग लगी होती है, उस मकान से दूसरे मकानों का सम्बन्ध तोड़ दिया जाता है, ताकि उनमें वह फैल न सके और इस प्रकार उसे सीमित करके फिर बुझाने का प्रयत्न किया जाता है । वह आग, जो लगने के समय ही न बुझाई जा सकी थी, इस उपाय से बुझ जाती है, बढ़ने नहीं पाती । यदि पहले ही आग न लगने दी जाती या लगने के समय