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ब्रह चर्य का पालन करने में असमर्थ हैं अथवा जिन्हें पुण्यफल की निर्जरा करनी है, वे ही लोग विवाह करते हैं। ५-बह मचर्य न पाल सकने पर अविवाहित रहने से हानि
आजकल पाश्चात्य देशों के बहत से स्त्री-पुरुषों में ऐसे विचार फैल रहे हैं कि विवाह करके स्वतन्त्रता खोने, किसी एक के होकर रहने और बालक-बालिका आदि के पालन-पोषण तथा स्त्री आदि के स्थायी व्यय में पड़ने की अपेक्षा यही अच्छा है कि थोड़ी देर के लिये किसी स्त्री या पुरुष से सम्बन्ध कर लिया जाय और कामवासना पूरी करके उसे त्याग दिया जाय । ऐसे लोग सोचते हैं कि 'विषयभोग चाहे स्व-स्त्री तथा स्व-पति से किया जाये, या परस्त्री तथा पर--पुरुष से किया जाय, रज-वीर्य नष्ट होने की दृष्टि से तो दोनों समान ही हैं । बल्कि विवाहित-जीवन में इस दृष्टि से और अधिक हानि है क्योंकि स्व-स्त्री या स्व-पति के साथ तो थोड़ी इच्छा होने पर भी दुर्विषय भोग करते हैं, लेकिन पर-स्त्री या पर-पुरुष के साथ तो दुर्विषय तभी भोगेंगे जब कामेच्छा बहुत प्रबल हो जाएगी और रोकने से न रुक सकेगी।'
इस प्रकार की युक्तियों द्वारा पाश्चात्य देशों के बहुत से लोग विवाहित-जीवन की जिम्मेदारियों से बचने के लिए और स्वच्छन्द रहने के लिये ब्रहमचर्य न पाल सकने पर भी अविवाहित रहना अच्छा समझते हैं । भारत के कुछ लोग भी ऐसे ही विचारों के समर्थक हैं और पाश्चात्य लोगों की युक्तियों के साथ ही यह दलील और पेश करते हैं कि स्व-स्त्री तथा स्व-पति के साथ मैथुन करने में भी पाप