________________
(१८८) न होने देने की शक्ति रखते हैं, उनके लिए तो विवाह न करना ही श्रेयस्कर है । लेकिन जो ऐसा करने में असमर्थ हैं और जिन्हें विवाह न करने पर दुराचार में प्रवृत्ति होने का भय है, नीतिज्ञों के समीप, ऐसे लोगों का विवाह करना, दुराचार में प्रवृत्त होने की अपेक्षा बुरा नहीं, किन्तु अच्छा माना जाता है । हां, विवाह को माना जाय दवा के रूप में । पाश्चात्य विद्वान् सन्त फ्रान्सिस कहता है कि 'कामवासना की दवा के रूप में विवाह बड़ी अच्छी वस्तु है, लेकिन वह कड़ी है; इसलिये यदि उसका व्यवहार बहुत सम्भाल कर न किया जावे तो खतरनाक भी है।' इस प्रकरण के प्रारम्भ में जो श्लोक दिया गया है, उसमें भर्तृहरि ने भी यही बात कही है । इस प्रकार विवाह, कामवासना रूपी रोग की दवा के सिवा और किसी सुख का साधन नहीं माना जा सकता और दवा लेने की आवश्यकता उन्हीं लोगों को होती है, जो रोग को और किसी उपाय से नहीं मिटा सकते । अर्थात् विवाह केवल वेही लोग करते हैं, जो कामवासना का विवेक द्वारा दमन करने में असमर्थ हैं ।
४-विवाह सब के लिये आवश्यक नहीं है ।
कामवासना-रूपी रोग को विवेक-रूपी औषधि से दबाया जा सकता है । जिनमें इस औषधि के सद्भाव का अभाव या इसकी कमी है, अथवा पूर्ण विवेकी होते हुये भी पुण्य फलों की निर्जरा करना जिनके लिये आवश्यक है और जो निकाचित बन्ध में पड़े हये हैं, वे ही विवाह करते हैं। एक पाश्चात्य विद्वान का कथन है, कि 'कामवासना इतनी प्रबल नहीं होती कि जिसका विवेक या नैतिक बल से पूर्ण