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३-विवाह कौन करते हैं ?
२५ और १६ वर्ष की अवस्था होने पर ही पुरुष और स्त्री इस बात के निर्णय पर पहुंचते हैं कि हम आयु भर ब्रह्मचर्य पाल सकते हैं या नहीं अर्थात् पूर्ण प्रखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकार करने की शक्ति हम में है या नहीं ? जो लोग ऐसा करने में समर्थ होते हैं, वे तो पूर्ण ब्रह्मचर्य की ही आराधना करते हैं-विवाह के झंझटों में नहीं फंसते, जैसे भीष्म पितामह । लेकिन जो लोग संसार में रहते हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य पालने में अपने आप को असमर्थ देखते हैं, वे विवाह कर लेते हैं, किन्तु दुराचार में प्रवृत्त नहीं होते । यद्यपि जैन-शास्त्रों में तो पूर्ण ब्रह्मचर्य का ही विधान पाया जाता है, विवाह विषयक विधान नहीं पाया जाता, लेकिन नीतिकारों ने पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत पालने में असमर्थ लोगों के लिए विवाह का विधान और विवाह न करके दुराचार में प्रवृत्त होने का अत्यन्त निषेध किया है। अर्थात् यह कहा गया है कि यदि विवाह नहीं करना है, तो ब्रह्मचर्य पालें, लेकिन दुराचार में प्रवृत्त न हो । जैन शास्त्रों में भी ऐसा विधान कहीं नहीं मिलता कि जो लोग सर्वविरति ब्रह्मचर्य पालने में असमर्थ है, उन्हें, विवाह न करने देकर दुराचार में प्रवृत्त होने दिया जाय । हां, जैन शास्त्रों में दुराचारप्रवृत्ति का निषेध अवश्य है । वे (विवाह न करके-या विवाह करके) पर-स्त्री-गमन करने वाले को तो दुराचारी कहते हैं, लेकिन विवाह करने वाले को दुराचारी नहीं कहते । ___जो लोग नैष्ठिक (यावज्जीवन) ब्रह्मचर्य का पालन करने में समर्थ हैं, दुर्विषयों में इन्द्रिय और मन को प्रवृत्त