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स्त्रियां और ब्रह्मचर्य
किन्नाप्नोति रमारूपा ब्रह्मचर्यतपस्विनी ।
'उस लक्ष्मी - रूपी स्त्री के लिए कुछ भी कठिन नहीं है, जो ब्रह्मचर्य - तप की तपस्विनी है ।'
कुछ लोगों का कथन है कि स्त्रियों को पूर्ण ब्रह्मचर्य नहीं पालना चाहिए; लेकिन जैन - शास्त्र इस कथन का समर्थक नहीं, अपितु विरोधी है । जैन शास्त्रों में ब्रह्मचर्य का जैसा उपदेश पुरुषों के लिये है, वैसा ही उपदेश स्त्रियों के लिये भी है । जैन - शास्त्रों का यह उपदेश आदर्श रहित नहीं किन्तु आदर्श सहित है । भगवान् ऋषभदेव की ब्राह्मी और सुन्दरी नाम्नी कन्याओं ने कर्म-भूमि के प्रारम्भिक युग में ही पूर्ण ब्रह्मचारिणी रहकर स्त्रियों के लिये ब्रह्मचर्य पालन करने का आदर्श रख दिया था । उन्नीसवें तीर्थङ्कर भगवान् मल्लिनाथ स्त्री ही थे । स्त्री होते हुए भी उन्होंने अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन किया था और तीर्थङ्कर पद प्राप्त किया था । इसी प्रकार राजिमती, चन्दनबाला आदि सतियों ने भी अखन्ड ब्रह्मचर्य पालन किया है । सारांश यह कि