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( १७६) जिस प्रकार अग्नि में डालकर तपाने से धातुओं का मल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार प्राणायाम करने से इन्द्रियों के सब दोष भस्म हो जाते हैं । १४-नियमितता।
ब्रह्मचारी का जीवन अनियमित नहीं होना चाहिए। अनियमित जीवन, प्रत्येक दृष्टि से हानिप्रद है । उसके प्रत्येक कार्य, नियमित रूप से ठीक समय पर हों । कोई समय, व्यर्थ या खाली न जावे। न कोई कार्य, असमय पर ही हो । अनियमितता से बचे रहने पर ही ब्रह्मचारी स्थिर रहता है। १५-ईश्वर-प्रार्थना ।
ब्रह्मचारी के लिये सबसे बड़ा नियम ईश्वर-प्रार्थना है । नियमित रूप से प्रातः सायं ईश्वर की प्रार्थना ब्रह्मचर्य की रक्षा का एक अच्छा साधन है। ईश्वर-प्रार्थनादि नियमों का पालन करने से ब्रह्मचर्य के साथ ही दूसरे कार्यों की सफलता में भी सहायता मिलती है। - इन नियमों के सिवा और भी बहुत से छोटे-छोटे नियम ऐसे हैं जिनका पालन करने पर ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है और पालन न करने पर ब्रह्मचर्य दूषित हो जाता है । जैसे कि ब्रह्मचारी को प्रौढ़ना-बिछौना नरम न रखना, कड़ा रखना, मूलायम या चटक-मटक वाले वस्त्र न पहनना, स्त्रियों के चित्र न देखना और न रखना आदि । इस प्रकार के समस्त नियमों का पालन करने वाला ही अपने व्रत को निर्दोष-रूप में पाल सकता है।
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