SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७८ ) उपायों में से एक उपाय, उपवास या तपस्या भी है । जैन शास्त्रों में तप का प्रतिपादन इसलिये भी विशेष रूप है। किया गया है कि उससे ब्रह्मचर्यव्रत सुरक्षित रहता है और ब्रह्मचर्य के बाधक दोष नष्ट हो जाते हैं । श्रीउत्तराध्ययन सूत्र में आहार - त्याग करने के छः कारणों में से एक कारण यह बतलाया है कि ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये आहार छोड़ दे । इस बात का समर्थन अन्य ग्रन्थकार भी करते हैं । जैसे श्राहारान् पचति शिखी दोषान् श्राहारवजितः । श्रायुर्वेद आहार को अग्नि पचाती है और दोषों को उपवास पचाते हैं । १३- ध्यान ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये ध्यान की भी आवश्यकता है । ध्यान ब्रह्मचर्य की रक्षा का प्रधान साधन है । ब्रह्मचर्यं का वर्णन करते हुए, प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है झाणबरकवाडसुकयमज्झप्पदिण्णफलिहं । -: ध्यान, ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा करने वाला कपाट है । मनुस्मृति में कहा है -: दह्यन्ते ध्यायमानानां धातूनां हि यथा मलाः । तथेन्द्रियाणां दह्यन्ते दोषा प्राणस्य निग्रहात् ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy