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'स्त्रियां ब्रह्मचर्य न पालें, ब्रह्मचारिणी न हों' यह बात, जैनशास्त्रों से विरुद्ध है । जैन - शास्त्र इस विषय में स्त्री और पुरुष दोनों को समान अधिकारी बताते हैं । आयु, देश काल आदि किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं लगाते । वे कहते हैं कि चाहे स्त्री हो या पुरुष, ब्रह्मचर्य का पालन जो भी करे इससे होने वाले लाभ को वही प्राप्त कर सकता है ।
पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां ब्रह्मचर्य का पालन भी अधिक सुचारु रूप से कर सकती हैं । जैन- शास्त्रों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिनमें स्त्रियों ने ब्रह्मचर्यं से पतित होते हुए पुरुषों को ब्रह्मचर्य पर स्थिर किया । जैसे कि सती राजमती ने रथनेमि को और कोशा नाम्नी श्राविका ने स्थूलभद्रजी के एक गुरु-भाई को ब्रह्मचर्य से पतित होने से
बचाया था ।
तात्पर्य यह है कि ब्रह्मचर्यं पुरुषों ही के लिये नहीं है किन्तु स्त्रियों के लिये भी वैसा ही आवश्यक है । स्त्रियां भी पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती हैं ।
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सर्वविरति ब्रह्मचर्य व्रत की आराधना के लिये स्त्रियों को भी उन नियमों का पालन करना आवश्यक है, जो पुरुषों के लिए पिछले प्रकरण में बताये गये हैं । हां, यह अन्तर अवश्य होगा कि जहां ब्रह्मचारी के लिये स्त्रियों का साथ और उनकी प्रशंसा आदि वर्ण्य हैं, वहां ब्रह्मचारिणी को पुरुषों का साथ, उनकी कथा आदि सर्व वर्ज्य समझना