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ही करना चाहिये । प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य की नौ गुप्त बताते हुए कहा है
-:
नो इत्थीरगं सेवित्ता भवइ, न इत्थोरगं इन्दियाणि मणोहराई रम्मई आलोइत्ता निभाइत्ता भवइ ।
ब्रह्मचारी स्त्री - सेवन न करे, स्त्रियों के मनोहर और रमणीय अंगों का अवलोकन न करे, न प्रशंसा ही करे ।
स्त्रियों के देखने से भी ब्रह्मचारी के लिए बड़े-बड़े अनर्थ सम्भव हैं । शास्त्र में यह बात नहीं मिलती कि मणिरथ पहले से ही दुराचारी था। मदनरेखा पर भी उसकी कुदृष्टि उसको देखने से पूर्व न थी, किन्तु उसने जब से मरेहा को देखा, तभी से उसकी कुदृष्टि हुई । उस देखने मात्र से होने वाली कुदृष्टि का परिणाम यह हुआ कि उसने मदनरेखा के लिये अपने छोटे भाई को जिसको उसने प्राग्रहपूर्वक युवराज बनाया था - मार डाला और अन्त में स्वयं को भी मरना पड़ा । इसलिये ब्रह्मचारी को न तो स्त्रियों को देखना ही चाहिए और न उनसे परिचय ही बढ़ाना चाहिए ।
अन्य ग्रन्थकारों ने भी ब्रह्मचारी को स्त्रियों के साथ परिचय बढ़ाने से रोका है । जैसे :
श्रविद्वांसमलं लोके विद्वासमपि वा पुनः । प्रमादात्पथं नेतुं कामक्रोधः वशानुगम् ॥ १॥ मात्रा स्वत्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् । बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ॥ २ ॥ मनुस्मृति अ० २