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चाहिए, जिनसे काम - विकार की जागृति हो; मन या इन्द्रियां दुविषयों की ओर दौड़ अथवा उनकी इच्छा करें । इस प्रकार अध्ययन भी ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा से भ्रष्ट कर देता है । ब्रह्मचारी के लिए विशेषतः धर्म-ग्रन्थों का ब्रह्मचारियों की कथाओं का और संसार की ओर से वैराग्य उत्पन्न करने वाली, संसार की नश्वरता बतलाने वाली तथा संसार एवं दुर्विषयों से घृणा उत्पन्न करने वाली पुस्तकों का अध्ययन ही लाभप्रद है । ऐसे अध्ययन से ब्रह्मचर्य की रक्षा में बहुत सहायता मिलती है ।
- संग
ब्रह्मचारी, कामी या व्यभिचारी का संग कदापि न करे । ऐसे लोगों की संगति से, कभी न कभी ब्रह्मचर्य का नष्ट होना सम्भव है । संगति का प्रभाव पड़ता ही है । विद्वानों का कथन है :
कामिनां कामिनीनाञ्च संगात्कामी भवेत्पुमान् ।
कामी पुरुष और भोगवती - स्त्री के साथ रहने वाला पुरुष कामी बन जाता है ।
इसलिये ब्रह्मचारी को ऐसी संगति से सदैव बचते रहना चाहिये; जिससे कामोत्पत्ति और ब्रह्मचर्य नष्ट होने का भय रहता है ।
१० - स्त्रीपरिचय
ब्रह्मचारी को, स्त्रियों का परिचय न बढ़ाने देना चाहिये, न अपने पास अधिक समय तक बैठा कर वार्तालाप
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