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मल से शुद्धि पाने के लिये या सुगन्धित द्रव्य का सेवन करके स्नान करना दातून मंजन आदि करना, ब्रह्मचारी तपस्वी और विधवा को उचित नहीं है ।
सुखशय्या नवं वस्त्रं, ताम्बूलं स्नानमंडनम् । दन्तकाष्ठं सुगन्धं च ब्रह्मचर्यस्य दूषणम् ॥१॥
- महाभारत शान्ति पर्व
'कोमल सुख शय्या, नवीन चमकीले भड़कीले वस्त्र. ताम्बूल, स्नान, सुश्रूषा, दांतुन और सुगन्ध का सेवन ये सब ब्रह्मचर्य के लिये दूषण हैं, इनके सेवन से ब्रह्मचर्यं दूषित हो जाता है ।'
वज्र्जयेन्मधुमांसगन्धमाल्यदिवास्वप्नांजनाभ्यंजनयानोपानृच्छत्र कामक्रोध लोभमोहवाद्यवादनस्नानदन्तधावनहर्षनृत्यगीतपरिवादभयानि ।
- गौतम स्मृति |
ब्रह्मचारी, मधु, मांस, गन्ध, फूलमाला, दिन में शयन, अंजन उबटन, सवारी, जूता, छाता, काम, क्रोध, लोभ, मोह, बाजा बजाना, स्नान, दातुन, प्रसन्नता, नाच, गाना, निन्दा और भय को त्याग दे ।
यही बात मनुस्मृति में कही गई है । उत्तराध्ययन सूत्र में ब्रह्मचारी के लिए विशेष रूप से कहा गया है कि :