SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७०) पदार्थ हैं । इसलिए ब्रह्मचारी को ऐसे पदार्थों के सेवन से भी हमेशा बचते रहना चाहिए । ६-अभृगार ब्रह्मचारी को शृंगार करना मना है । शृगार में स्नान, दन्तधावन, तेल-फूलेल का लगाना, अच्छे कपड़े और आभूषणादि पहनना है । प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है कि: _ 'ब्रह्मचारी, स्नान और दन्त-धावन न करे । यदि पसीना हो, तब भी मैल मिश्रित पसीने से युक्त शरीर रखे, मौन रहे, निरर्थक बात-चीत न करे, केशों का लुचन करे, तथा और भी जो कष्ट हों, उन्हें क्षमा-सहित सहन करे, लाघवता धारण करे, गर्मी-सर्दी सहन करे, भूमि अथवा काष्ठ शैया पर शयन करे, भिक्षा के लिये गृहस्थों के घर में प्रवेश करने पर आहार प्राप्त हो या न हो, सम्मान हो अथवा अपमान हो, निन्दा हो या प्रशंसा हो, सभी अवस्थानों में समभाव रक्खे, मच्छर डांस आदि द्वारा प्राप्त हुए कष्टों को सहन करे, नियम, सद्गुण और विनय का आचरण करे । ऐसा करने से ब्रह्मचर्य स्थिर रहता है । इस प्रकार ब्रह्मचारी को अन्य नियमों के साथ ही स्नान दन्त-धावन आदि शृगार न करने का नियम भी बताया गया है । अन्य ग्रन्थकारों ने भी ब्रह्मचारी के लिये ऐसे ही नियम बताये हैं । जैसे : मलस्नानं सुगन्धाद्यः स्नानं दन्तविशोधनम् । न कुर्याद् ब्रह्मचारी च तपस्वी विधवा तथा ॥ –विद्यासंहिता शिवपुराण
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy