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( १६९) 'ब्रह्मचारी प्रमाण से अधिक भोजन पानी न खावेपिये ।'
ब्रह्मचारी को अधिक भोजन कदापि न करना चाहिए। इसी प्रकार वह भोजन भी न करना चाहिए जो गरिष्ठ, कामोत्तेजक शक्तिवर्द्धक और खट्टा, मीठा, चरपरा आदि स्वाद विशेष लिए हये हो । ब्रह्मचारी हल्का, थोड़ा, नीरस
और रूखा भोजन ही करता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में, ब्रह्मचर्य की जो नौ गुप्तियां बताई गई हैं, उनमें से एक गुप्ति सरस भोजन न करने की ही है और वह इस प्रकार है'नो पणीयरसभोई' अर्थात् ब्रह्मचारी रसप्रणीत भोजन न करे ।
पुस्तकों के अनुसार बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था कि 'एक बार हल्का पाहार करने वाला महात्मा है, दो बार सम्हल कर यानि थोड़ा २ आहार करने वाला बुद्धिमान
और भाग्यवान है और इससे अधिक खाने वाला महा-मुर्ख, अभागा और पशु का भी पशु है ।' - ब्रह्मचारी को ऐसे पदार्थों का भी सेवन नहीं करना चाहिये जो मादक हों । मादक-द्रव्यों से बुद्धि नष्ट होती है और बुद्धि नष्ट होने पर समस्त दुष्कर्मों का होना सम्भव है। जैसे–चाय, गांजा, भङ्ग, अफीम, शराब, तम्बाखू, बीड़ी सिगरेट, चुरुट आदि नशा करने वाले समस्त पदार्थों की गणना मादक पदार्थों या मद में है । वैद्यक-ग्रन्थों में कहा है:
बुद्धि लुम्पति यद् द्रव्यं मदकारि तदुच्यते ।
जिन पदार्थों से बुद्धि नष्ट होती है, वे सब मादक