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________________ ( १६८) करने लगता है । इसलिए मन को प्रत्येक समय में किसी न किसी सत्कार्य में लगाये रखना उचित है । ५- भोजन-संयम । ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये, अधिक भोजन करना वज्यं है । जीवन के लिए जितना भोजन आवश्यक है उससे किंचित् भी अधिक भोजन ब्रह्मचारी को न करना चाहिए। अधिक भोजन से इन्द्रियों में विकार उत्पन्न होता है, जो ब्रह्मचर्य नाशक है । ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए थोड़ा भोजन ही अच्छा है । विद्वानों का कथन है कि 'स्वल्पाहारः सुखा. वहः' अर्थात् थोड़ा भोजन सुखप्रद है। इस कथन का उल्टा यह हुआ कि अधिक भोजन दुःखप्रद है । अधिक भोजन केवल ब्रह्मचर्य के लिए नहीं, किन्तु प्रत्येक दृष्टि से हानि-प्रद ही है.। चाणक्य-नीति में कहा है : अनारोग्यमनायुष्यमस्वयं चाति भोजनम् । अपुण्यं लोकविद्विष्टं तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ॥ अति भोजन से अस्वस्थता बढ़ती है, आयुर्बल क्षीण होता है, अनेक रोग पैदा होते हैं, पाप-कर्म में प्रवृत्ति होती है और लोगों में निन्दा होती है । इसलिए अधिक भोजन करना वर्जित है। __ब्रह्मचर्य की रक्षा के उपाय बताते हुए प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है : नो पाणभोयरणस्य प्रइमायाए प्राहारइत्ता ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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