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( १६७ )
ध्वायतो विषयान् पुंसः, सङ्गस्तेषूजायते । संगात्सयायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ क्रोधाद्भवति संमोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।
( अध्याय २ )
'विषयों का ध्यान करते रहने पर, विषयों से स्नेह हो जाता है और फिर उनके पाने की इच्छा - काम की उत्पत्ति होती है। इस काम से ही क्रोध उत्पन्न होता है । क्रोध से अज्ञान उत्पन्न होता है, अज्ञान से स्मृति नष्ट होती है, स्मृति नष्ट होने से बुद्धि भ्रष्ट होती है और बुद्धि भ्रष्ट होने पर सत्यानाश हो जाता है ।'
इस प्रकार, आत्मा के पतन का कारण, मन में विषयों का ध्यान करना - विषयों का चिन्तन करना ही ठहरता है । इसलिए ब्रह्मचारी को, मन पर संयम रखने की आवश्यकता है ।
मन को किसी भी समय कार्य से खाली रखना, ब्रह्मचर्य व्रत को जोखिम में डालना है । मन को जब भी कोई कार्य न होगा, वह तभी बुरे विचार करने लगेगा । बुरे विचार ही पाप के कारण हैं । संसार में कहावत है कि 'वश में किये हुए भूत को जब कोई काम नहीं बताया जाता वह भूत, उस वश करने वाले के रक्त-मांस को ही खा जाता है ।' ठीक इसी प्रकार, जब मन को कोई काम नहीं रहता तब वह हृदय के सद्विचारों का, मनुष्यों के गुणों का भक्षण