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________________ ( १६६ ) मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः । मन ही मनुष्य के लिये पाप-बंध या मोक्ष का कारण है । बन्धाय विषयासक्तं मुक्तौ निर्विषयं मनः । 'विषयासक्त मन पाप - बन्ध का कारण है और विशुद्ध मन मोक्ष का कारण है ।' इन्द्रियां दुर्विषयों में मन को साथ लेकर ही प्रवृत्त होती हैं । यदि मन, इन्द्रियों का साथ न दे तो इन्द्रियां दुविषयों में प्रवृत्त नहीं हो सकतीं । कदाचित् इन्द्रियों को दुर्विषय में प्रवृत्त न होने दे, तब भी यदि कोई मन से दुर्वि - षयों का चिन्तन करता है तो वह अब्रह्मचर्य का पाप उसी प्रकार बांधता है जिस प्रकार, ( शास्त्र की कथा के अनुसार ) तंदुलमच्छ, प्रकट में हिंसा न करके भी हिंसा का पाप बांधता है । गीता में कहा है --- कर्मेन्द्रियाणि संयम्य, य श्रास्ते मनसा स्मरन् । इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा, मिथ्याचारः स उच्यते ॥ ( अध्याय ३ ) 'कर्मेन्द्रियों को रोक कर, मन से विषयों का चिन्तन करने वाला मूढात्मा, मिथ्याचारी ( पाखण्डी ) कहलाता है ।' आत्मा के विनाश का कारण बताते हुए, गीता में कहा है :
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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