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________________ ( १६५) ६ - शृगार-स्नान, विलेपन, धूप, माला, विभूषा और केश . रचना आदि न करना । १०-कामोत्तेजक शब्द रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से बचना । सर्वविरति ब्रह्मचारी को ऊपर कही हई भावनाओं एवं समाधि-स्थानों के नियमों का पालन करना नितान्त आवश्यक है । ऐसा न करने से, सर्वविरति ब्रह्मचर्य व्रत में अतिचार लगता है और अतिचार लगने से व्रत दूषित हो जाता है । यहां प्रश्न होता है कि आंखों के सामने आये हए रूप को या कान में पड़े हुये शब्द को देखने-सुनने से किस प्रकार बचा जा सकता है ? क्या आंख-कान आदि को बन्द रखना चाहिए ? इसका उत्तर यह है कि सामने आये हए रूप को न देखना या कान में पड़े हुए शब्दों को न सुनना, यह वास्तव में अशक्य है। इसके लिए आंख-कान प्रादि बंद रखने की जरूरत नहीं है। किन्तु ऐसे समय में ब्रह्मचारी को, अपने में राग-द्वप न होने देना चाहिए और वस्तुस्वरूप चिन्तन करना चाहिए । ३-मनःसंयम सर्वविरति ब्रह्मचर्य-व्रत का पूर्णतया पालन तभी माना जाता है जब शरीर के साथ ही मन और वचन पर संयम रक्खा जावे । केवल शरीर से अब्रह्मचर्य का सेवन न करना, सर्वविरति ब्रह्मचर्य नहीं है, किन्तु मन वचन और काय इन तीनों से अब्रह्मचर्य का सेवन न करना चाहिए बल्कि, शरीर की अपेक्षा मन पर अधिक संयम रखने की आवश्यकता है । क्योंकि :
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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