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( १६४ ) इस प्रकार ब्रह्मचर्य-व्रत की रक्षा के लिये भगवान् ने उत्तराध्ययन सूत्र में दस समाधिस्थान बताये हैं, जो संक्षेप में इस प्रकार है :१–वैक्रिय और औदारिक शरीर-धारिणी स्त्री, पशु और
नपुंसक के संसर्ग वाले प्रासन और निवास-स्थान आदि का उपयोग नहीं करना अर्थात् संसर्ग-रहित स्थान में
रहना । २-अकेली स्त्री से बात-चीत न करना, न अकेली स्त्री को
कथावार्ता, व्याख्यान आदि सुनाना और न स्त्री-कथा
करना । ३-स्त्रियों के साथ एक ग्रासन पर न बैठना और जिस
आसन पर स्त्री बैठी हो, उस आसन पर स्त्री के उठने
से दो घड़ी पश्चात् तक न बैठना । ४- स्त्रियों के मनोहर अांख, नाक आदि का तथा दूसरे
अंगोपांगों का अवलोकन न करना, न उनका चिन्तन
ही करना । ५-स्त्रियों के रति -प्रसंग के मोहक-शब्द, रति-कलह के
शब्द, गीत की ध्वनि, हंसी की किलकिलाहट, क्रीडा के शब्द और विरह-रुदन को पर्दे के पीछे से या दीवार
की आड़ से भी न सुनना । ६-पूर्व में अनुभव की हुई, आचरण की हुई या सुनी हुई
रति-क्रीड़ा, काम-क्रीड़ा आदि का स्मरण भी न करना। ७-पौष्टिक खाद्य एवं पेय पदार्थों का उपयोग न करना । ८-सादा भोजन आदि भी प्रमाण से अधिक न खाना-पीना।