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(१५८ ) है; कायरों के लिये नहीं; जैसे कि हाथी का पलान, हाथी ही उठा सकता है, गधा नहीं उठा सकता । ५-सर्वविरति ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन कौन कर सकता है?
सर्वविरति ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन, संसार-त्यागी साधु ही कर सकते हैं, दूसरा नहीं कर सकता । संसार-व्यवहार में रहने वाले सभी मनुष्य, एकदम से संसार-व्यवहार नहीं छोड़ सकते; इसलिये संसार-व्यवहार में रहने वालों के लिये देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत बतलाया गया है । इस प्रकार ग्रहत्यागियों के लिये सर्व विरति ब्रह्मचर्य-व्रत है और गृहस्थियों के लिये देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत । ६-ब्रहमचर्य-व्रत स्वीकार करने से लाभ
इन्द्रियाँ पाप से नहीं, पुण्य से मिली हैं । पुण्य से मिली हुई इन्द्रियों को पुण्य की ओर लगाना ही उचित है, न कि पाप की ओर । जब इन पुण्य से मिली हुई इन्द्रियों द्वारा धर्म का लाभ लिया जा सकता है, तब इनसे पाप क्यों किया जाय ? इन्द्रियों द्वारा काम-भोग भोगना, पुण्य से प्राप्त इन्द्रियों को पाप में प्रवृत्त करना है। इन्द्रियों की सार्थकता तभी है, इनके मिलने का लाभ तभी है, जब इन्हें असंयम में न लगाया जाकर, संयम में रखा जाय । इनके द्वारा दुर्विषय भोगना - इन्द्रियों का दुर्विषय में लिप्त होनाउसी प्रकार नाशकारी है, जिस प्रकार पतंग के लिये दीपक की लौ से मोह करना नाशकारी है । पतंग केवल आँखों के विषय-रूप पर मोहित होने से नष्ट हो जाता है तो जिनकी पांचों इन्द्रियां दुर्विषय-लोलुप हों, वे नष्ट क्यों न होंगे ? इन्द्रियों को दुविषयभोग में लगाने से, दुर्विषय-लोलुप