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________________ ( १५६ ) बनाने से - नांश अवश्यम्भावी है । इसलिये काम-भोग के दुष्परिणामों से बचने के वास्ते सर्वविरति ब्रह्मचर्य व्रत को स्वीकार करना और पालन करना उचित है । मोक्ष की आराधना के लिये चारित्र धर्म के अन्तर्गत भगवान् ने जिन पांच महाव्रतों को बताया है, उनमें से यह सर्वविरति ब्रह्मचर्यं चौथा महाव्रत है । मोक्ष प्राप्ति के लिये ब्रह्मचर्य व्रत को स्वीकार करना और पालन करना आवश्यक है । ब्रह्मचर्य व्रत के बिना अन्य व्रत मोक्ष के लिये पूर्णरूपेण सार्थक नहीं होते, न ब्रह्मचर्य के अभाव में अन्य व्रत, भली-भांति आराधे ही जा सकते हैं । ब्रह्मचर्य व्रत, मोक्ष के लिये कैसा उपयोगी है, यह बताते हुये एक आचार्य कहते हैं: एस धम्मे धुए नियए सासए जिणदेसिए । सिज्झा सिज्यंति चारणं सिज्झिस्संति तहापरे ॥ -- श्री उत्तराध्ययन सूत्र । यह ब्रह्मचर्य - धर्म ध्रुव, नित्य अविनाशी और जिनदेव का कहा हुआ है । इसी ब्रह्मचर्यं धर्म से सिद्ध हुए हैं, होते हैं और होंगे । सर्वविरति ब्रह्मचर्य व्रत की प्रशंसा करते हुए एक प्राचार्य कहते हैं: व्रतानां ब्रह्मचर्यं हि निर्दिष्टं गुरुकं व्रतम् । तज्जन्यपुण्य सम्भारसंयोगाद् गुरुरुच्यते ॥ 'व्रतों में ब्रह्मचर्य ही बड़ा व्रत है; इसी व्रत के योग से गुरु कहे जाते हैं ।' पुण्य
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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