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ब्रहमचर्य-व्रत
विरमत बुधा योषित्संगात्सुखात् क्षणभंगुरात् कुरुत करुणामंत्रीप्रज्ञावधूजनसंगमम् । न खलु नरके हाराकान्तं घनस्तनमण्डलं शरणमथवा श्रोणीबिम्ब रणन्मणिमेखलम् ॥
भर्तृहरि
'हे बुद्धिमानो ! क्षणिक और नाशवान् स्त्री-संग के सुख को छोड़ कर मैत्री, करुणा और प्रज्ञा (ज्ञान) रूपी स्त्री का साथ करो। नरक में जब ताड़ना होगी, तब स्त्रियों के हार-भूषित स्तनमण्डल और घुघरूदार करधनी से शोभित कमर सहायता न करेंगे ।'
१-ब्रह्मचर्य व्रत का अर्थ ।
अब्रह्मचर्य से निवृत्त होकर, ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रतिज्ञा करने का नाम 'ब्रह्मचर्य-व्रत' है । इस प्रकार की प्रतिज्ञा पालन करने वाले को ब्रह्मचारी कहते हैं ।