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जीवों के सिवा संमूर्छिम जीवों की तो गिनती ही नहीं है । इस प्रकार एक बार के मैथुन से अनेक जीवों की हिंसा का पाप होता है ।
स्त्री-योनि में जीव होते हैं, इस बात को दूसरे लोग भी मानते हैं । वात्सायन काम-सूत्र का टीकाकार और रति-रहस्य का कर्ता भी स्त्री-योनि में जीव होना स्वीकार करता है । स्त्री-योनि में जीव हैं, तो मैथुन से उनका नाश होना और हिंसा का पाप लगना स्वाभाविक है। इसलिए अहिंसा-व्रत की रक्षा की दृष्टि से भी अब्रह्मचर्य त्याज्य है।