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________________ ( १५०) पड़ता है । अब्रह्मचर्य से पर-स्त्री-गमन के कारण कितने ही जीव बंधन में पड़ते हैं और मारे जाते हैं । अब्रह्मचर्य के मोह से पराभव को पाये हुये जीव इस प्रकार दुर्गति के अधिकारी बनते हैं।" प्रश्नव्याकरण सत्र में आगे यह भी बताया गया है कि अब्रह्मचर्य के कारण स्त्रियों के लिये कैसे-कैसे महान संग्राम हुए हैं। स्त्रियों के लिये होने वाले संग्रामों का वर्णन करने के पश्चात् प्रश्नव्याकरण सूत्र में लिखा है : इहलोए ताव नट्ठा परलोए य नट्ठा महया मोहतिमिसंधयारे घोरे तसथावरसुहमवादेरसु य पज्जत्तमपज्जत्त साहारणसरीरपत्तेयसरीरसु य....." " इन्द्रियों का दुर्विषय भोग रूप मैथुन, इस लोक में बन्धनकर्ता और परलोक में अनिष्टकारी है। महा मोह-रूप अन्धकार का स्थान है । त्रस, स्थावर, सूक्ष्म बादर पर्याप्त अपर्याप्त आदि पर्यायों से चतुर्गतिरूप संसार में विशेष समय तक और बारम्बार परिभ्रमरण कराने वाले मोहनीय कर्म का वर्द्धक है।" एसोसो प्रबंभस्स फलविवागो इहलोइयो परलोइनो अपसुप्रो बहुदुक्खो महन्भयत्रो बहुपयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो बाससहस्सेहि मुच्चती न य अवेदयित्ता अस्थि हु मोक्खोति । .. " इस प्रकार अब्रह्मचर्य का फल इस लोक तथा
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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