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तथा दर्शन-मोहनीय और चरित्र-मोहनीय कर्म का हेतु है । प्राणियों को इसका परिचय दीर्घकाल से है, इसलिए इसका अन्त करना कठिन है।"
प्रश्नव्याकरण सूत्र में, आगे अब्रह्मचर्य के तीस नाम बताते हुये यह बताया गया है कि बड़ी-बड़ी ऋद्धि वाले चक्रवर्ती तथा माण्डलिक राजाओं की भी इससे अतृप्ति रही है । इसकी निन्दा करते हुए इसी सूत्र में आगे कहा है
मेहुणसन्नापगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहि हरणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीरएसु प्रबरे परदारेहि हम्मंति.........
" मैथुन में गृद्ध ब्रह्मचर्य के अज्ञान से भरे हुए लोग परस्पर एक दूसरे की बात करते हैं । विष देकर मार डालते हैं । यदि परदारा हई तो उस स्त्री का पति जारपति की घात करता है । इस प्रकार अब्रह्मचर्य मृत्यु का कारण है। अब्रह्मचर्य से धन और स्वजन का नाश होता है एवं परदारा में गृद्ध स्त्री-मोह से परिपूर्ण घोड़े, हाथी, बैल, भैंसे, मृग आदि पशु परस्पर लड़ कर मर जाते हैं और अपनी संतान तक की घात कर डालते हैं । इसी प्रकार पशु और मनुष्य भी परस्पर युद्ध करते है । अब्रह्मचर्य के कारण मित्रों में भी वैर-भाव उत्पन्न हो जाता है । अब्रह्मचर्य से सिद्धान्त द्वारा प्ररूपित चारित्र-रूपी मूल-गुण का भेदन हो जाता है। श्रुत-चारित्र-धर्म में रत जीव भी स्त्री-संग से अपयश तथा अकीर्ति को प्राप्त होते हैं । अब्रह्मचर्य से शरीर रोगी बना रहता है और अन्त में शीघ्र ही मृत्यु के मुख से पड़ना