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परलोक में अल्प सूख और महान् दुःख है । अब्रह्मचर्य महा भय का स्थान, कर्मरूपी रज से गाढ़ी तरह घिरा हुआ एवं दारुण कर्कश और बिना भोगे न छूटने वाले कर्मों को बांधने वाला है।"
गीता में ब्रह्मचर्य की निम्न प्रकार से निन्दा की हैकाम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महा पाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥ धूमेनावियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ।। आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा। कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥ इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते । एतविमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनाम् ।।
(गीता अध्याय ३ ) " मनुष्य को पाप के रास्ते ले जाने वाले रजोगुण से उत्पन्न काम और क्रोध ही हैं । वे भूखमरे या पेट्र महापापी और शत्रु हैं । जिस प्रकार आग धुएं से ढंकी रहती है, कांच मैल से धु धला दीखता है और गर्भ का बालक झिल्ली से ढंका रहता है, उसी प्रकार सारा संसार काम से ढंका हुआ है। यानी जिसमें काम न हो-जो काम से परे हो- वह संसार से भी परे है । हे अर्जुन ! कभी तृप्त न होने वाली यह काम रूपी आग आत्मा की सदा की वैरिन