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________________ ( १४७ ) इन्द्रियों में से एक भी इन्द्रिय के विषय - लोलुप बनने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है । 1 बुद्धि के नष्ट होने पर इन्द्रिय- संयम कहां ? स्वभावतः विषय - प्रिय इन्द्रियाँ फिर तो दुविषयों की ही ओर दौड़ती हैं । बुद्धि के नष्ट हो जाने से इन्द्रियाँ निरंकुश हो जाती हैं और फिर आत्मा को दिन-प्रतिदिन पतन की ही ओर अग्रसर करती हैं । नष्टबुद्धि इन्द्रियों के वश होकर, यह सिद्धान्त मानने लगता है : श्रसत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् । अपरस्परसंभूतं किमन्यत्काम हेतुकम् ॥ ( गीता अ० १६ ) " जगत् असत्य, निराधार और अनीश्वर है । यह यों ही बना है । काम के सिवा इस संसार के बनने का दूसरा क्या हेतु हो सकता है ?" इस सिद्धान्त को मान कर, फिर ईहन्ते कामभोगार्थ मन्यायेनार्थ संचयान् ( गीता अ० १६ ) तात्पर्य यह है कि मैथुन के किसी एक भी अंग के सेवन से अर्थात् एक भी इन्द्रिय की दुविषय- लोलुपता से ब्रह्मचर्य पूर्ण रूपेण अपना ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाता है और श्राधिपत्य जमा लेता है : २ -- ब्रह्मचर्य की निन्दा और उससे हानि
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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