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नैष्ठिक ब्रहमचारी रह कर कुल-सन्तति को न बढ़ाते हुए भी. दिव्य गति को प्राप्त हुए हैं।'
जैन-शास्त्रानुसार स्वर्ग-प्राप्ति कोई बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात तो मोक्ष प्राप्त करना है । ब्रहमचर्य से संसार की सभी ऋद्धि मिल जाय, स्वर्ग का राज्य भी प्राप्त हो जाय, तब भी यदि इसके द्वारा मोक्ष प्राप्त न हो सकता होता तो जैन-शास्त्र इसे धर्म का अंग न मानते , क्योंकि जैनशास्त्र उसी वस्तु को उपयोगी और महत्त्व की मानते हैं, जिसके द्वारा मोक्ष प्राप्त हो । लेकिन उक्त प्रमाण जिन ग्रन्थों के हैं, वे ग्रन्थ स्वर्ग को ही अन्तिम ध्येय मानते हैं । फिर भी ऊपर दिये हए श्लोकों में से पहला श्लोक दूसरे श्लोक से अप्रामाणिक ठहरता है ।