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तात्पर्य यह कि ब्रहमचर्य, लौकिक और लोकोत्तर, दोनों ही सुखों का प्रधान साधन है । इसकी पूर्ण-रूपेण प्रशंसा करना तो समुद्र को हाथों के सहारे तैरने का साहस करना है।
७ - ब्रहमचर्य पर अपवाद
कुछ लोगों का कथन है कि पूर्ण ब्रहमचारी को मोक्ष या स्वर्ग प्राप्त नहीं होता क्योंकि पूर्ण ब्रहमचारी निःसंतान रहते हैं और---
अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गो नैव च नैव च ।
'पुत्रहीन की गति नहीं होती और स्वर्ग तो कभी भी नहीं मिलता है।'
इस श्लोक से पूर्ण ब्रहमचारी को स्वर्ग-मोक्ष प्राप्ति से वंचित बताया जाता है, लेकिन इस श्लोक को खण्डन करने वाला दूसरा यह प्रमाण भी है :स्वर्गे गछन्ति ते सर्वे ये केचिद् ब्रहमचारिणः । ' जितने भी ब्रहमचारी हैं, वे सब स्वर्ग को जाते हैं।'
और भी कहा है कि :अनेकानि सहस्राणि, कुमारब्रहमचारिणाम् । दिवं गतानि राजेन्द्र, अकृत्वा कुलसन्ततिम् ।।
हे राजन् ! हजारों मनुष्य ऐसे हुए हैं जो आजीवन