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________________ ( १४२ ) तात्पर्य यह कि ब्रहमचर्य, लौकिक और लोकोत्तर, दोनों ही सुखों का प्रधान साधन है । इसकी पूर्ण-रूपेण प्रशंसा करना तो समुद्र को हाथों के सहारे तैरने का साहस करना है। ७ - ब्रहमचर्य पर अपवाद कुछ लोगों का कथन है कि पूर्ण ब्रहमचारी को मोक्ष या स्वर्ग प्राप्त नहीं होता क्योंकि पूर्ण ब्रहमचारी निःसंतान रहते हैं और--- अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गो नैव च नैव च । 'पुत्रहीन की गति नहीं होती और स्वर्ग तो कभी भी नहीं मिलता है।' इस श्लोक से पूर्ण ब्रहमचारी को स्वर्ग-मोक्ष प्राप्ति से वंचित बताया जाता है, लेकिन इस श्लोक को खण्डन करने वाला दूसरा यह प्रमाण भी है :स्वर्गे गछन्ति ते सर्वे ये केचिद् ब्रहमचारिणः । ' जितने भी ब्रहमचारी हैं, वे सब स्वर्ग को जाते हैं।' और भी कहा है कि :अनेकानि सहस्राणि, कुमारब्रहमचारिणाम् । दिवं गतानि राजेन्द्र, अकृत्वा कुलसन्ततिम् ।। हे राजन् ! हजारों मनुष्य ऐसे हुए हैं जो आजीवन
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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