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वैद्यक ग्रन्थों में भी कहा गया है :ब्रहमचर्यं परं ज्ञानं ब्रहमचर्यं परं बलं । ब्रहमचर्यमयो ह्यात्मा ब्रह्मचयव तिष्ठति ॥
ब्रहमचर्य ही सब से उत्तम ज्ञान है, अपरिमित बल है, यह आत्मा निश्चय रूप से ब्रहमचर्यमय है और ब्रहमचर्य से ही शरीर में ठहरा हुआ है ।
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इन प्रमाणों से यह बात भलीभांति सिद्ध हो जाती है कि ब्रहमचर्य से शरीर सुन्दर भी रहता है, बलवान् भी रहता है, दीर्घजीवी भी होता है और यश-कीर्ति भी प्राप्त होती है । इस प्रकार ब्रहमचर्य, इहलौकिक सुखों का भी साधन है । लौकिक वैभव, विद्या, धन आदि तभी प्राप्त होते हैं, जब शरीर स्वस्थ हो और उसमें वल तथा साहस हो । ब्रहमचर्य से शरीर स्वस्थ रहता है और शरीर में बल तथा साहस भी रहता है ।
विद्वानों का मत है कि ब्रहमचर्य के बिना विद्या प्राप्त नहीं होती । विद्या - प्राप्ति के लिये ब्रहमचर्य का होना आवश्यक है । अथर्ववेद में कहा है :
ब्रहमचर्येण विद्या ।
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ब्रहमचर्य से विद्या प्राप्त होती है ।
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विदुर नीति में कहा है :
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विद्यार्थं ब्रहमचारी स्यात् !
'यदि विद्या के इच्छुक हो तो ब्रहमचारी बनो । '