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धर्म बताते हुये भगवान् ने जिन पांच महाव्रतों का उपदेश. दिया है, उनमें से ब्रहमचर्य चौथा महाव्रत है। ब्रहमचर्य के बिना, चारित्र-धर्म का पूर्णरूपेण पालन नहीं हो सकता। आत्मा को संसार-बन्धन से छुड़ा कर, मोक्ष दिलाने वाले चारित्र-धर्म का, ब्रहमचर्य एक प्रधान और प्रावश्यक अंग है । ब्रहमचर्य के बिना न तो अब तक कोई मुक्त हुआ ही है, न हो ही सकता है । सिद्धात्माओं को सिद्ध गति प्राप्त कराने वाला यह वह मचर्य ही है । इस प्रकार पारलौकिक लाभ का ब्रहमचर्य एक प्रधान साधन है ।
६-ब्रह्मचर्य से इहलौकिक लाभ
ब्रहमचर्य से पारलौकिक ही नहीं, इहलौकिक लाभ भी है । ऊपर बताया जा चुका है कि ब्रहमचर्य से स्वास्थ्य अच्छा रहता है । स्वास्थ्य अच्छा रहने से ही इह-लौकिक कार्य सुचारु-रूप से सम्पादन हो सकते हैं ।
सांसारिक-जीवन में, शरीर स्वस्थ, सुन्दर, बलवान्, एवं चिरायू रहने की, विद्या की, धन की, कर्त्तव्य-दृढ़ता की और यशादि की अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं। प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि ने ब्रह्मचर्य की प्रशंसा करते हुये कहा है -
चिरायुषः स संस्थानां दृढसंहनना नराः । तेजस्विनो महावीर्या भवेयुब्रह्मचर्यतः ॥ .
ब्रहमचर्य से शरीर चिरायु, सुन्दर, दृढ़-कर्तव्य तेजपूर्ण और पराक्रमी होता है ।