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( १३६ ) सव्वं । सोलं तवो य विणो य संजमो य खंती गुत्ती मुत्ती तहेव इहलोइय पारलोइय जसेय कित्ती य पच्चो य ।
ब्रहमचर्य की प्राराधना से सभी व्रत आराधित होते हैं । तप, शील, विनय, संयम, क्षमा, गुप्ति और मुक्ति सिद्ध होती हैं तथा इस लोक और परलोक में यश-कीर्ति की विजय-पताका फहराती है ।'
अन्य ग्रन्थकार भी ब्रहमचर्य से परलोक सम्बन्धी लाभ बताते हुए कहते हैं :
समुद्रतरणे यद्वत् उपायो नौः प्रकीर्तिता । संसारतरणे यद्वत् ब्रह्मचर्य प्रकीर्तितम् ॥
- स्मृति । समुद्र से पार जाने के लिये, जिस प्रकार नौका श्रेष्ठसाधन है, उसी प्रकार संसार. से तरने के लिए ब्रहमचर्य उत्कृष्ट साधन है।
ग्रन्थकारों ने यज्ञ भी ब्रहमचर्य को ही माना है । जैसे :अथ यद्यज्ञ इत्याचक्षते ब्रह्मचर्य मेव ।।
( छान्दोग्योपनिषद् । ) 'जिसे यज्ञ कहते हैं, वह ब्रहमचर्य ही है ।' संसार-बन्धन से छूट कर, मोक्ष प्राप्ति के लिये चारित्र