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( १३८ ) ५- ब्रहमचर्य से पारलौकिक लाभ
पारलौकिक लाभ का ब्रहमचर्य एक प्रधान साधन है । ब्रहमचर्य से आत्मा परलोक सम्वन्धी सभी सुखों को प्राप्त कर सकता है । प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा--
प्रज्जव साहुजणाचरियं मोक्खमग्गं विसुद्ध सिद्धि गइनिलयं सासयवव्वावाहमपुणब्भवं पसत्थं सोमं सुभं सिवममक्खयकरं। जइवरसारक्खियं सुचरियं सुभासियं नवरिमुणिवरेहिं महापुरिसधीरसूरधम्मियधिइमंताण य सया विसुद्धं भव्वं भव्वजणाणुचिण्णं निस्संकियं निब्भय नित्त सं निरायासं ।
'ब्रह्मचर्य ' अन्तःकरण को पवित्र एवं स्थिर रखने वाला है, साधुजनों से सेवित है, मोक्ष का मार्ग है और सिद्धगति का गृह है, शाश्वत है, बाधा-रहित है, पुनर्जन्म को नष्ट करने के कारण अपुनर्भव है, प्रशस्त है, रागादि का अभाव करने से सौम्य है, सूख-स्वरूप होने से शिव है, दुःख सुखादि द्वन्द्वों से रहित होने से अचल है अक्षय तथा अक्षत है, मुनियों द्वारा सुरक्षित एवं प्रचारित है, भव्य है, भव्यजनों द्वारा आचरित है, शङ्का-रहित है, निर्भयता का देने वाला, विशुद्ध तथा झंझटों से दूर रखने वाला एवं खेद और अभिमान को नष्ट करने वाला है ।
प्रश्नव्याकरण सूत्र में आगे कहा है।जम्मि य पाराहियम्मि पाराहिय वयमिरणं