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________________ ( १३७ ) प्रारम्भ में दिया जा चुका है । प्रश्नव्याकरण सूत्र में भी कहा है : जम्बू ! एत्तो य बंभचेरं तव नियम-नाण दंसणचरितसम्मत्तविषयमूलं यम-नियम - गुणप्पहाणजुत्तं, हिमवन्तमहंत तेयमतं पसत्थगंभीरथिमियमभं । हे जम्बू ! यह ब्रहमचर्य, उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, सम्यक्त्व और विनय का मूल है । जिस प्रकार सब पर्वतों में हिमालय महान् और तेजस्वी है, उसी प्रकार सब तपस्यायों में ब्रह ्मचर्य श्रेष्ठ है । अन्य ग्रन्थों में भी ब्रहमचर्य को उत्तम तप माना गया है । वेद भी ब्रहमचर्य को ही तप मानते हैं । जैसे तपो व ब्रह्मचर्यम् । ब्रहमचर्य ही तप है । गीता में भी ब्रहमचर्य को तप माना है । उसमें कहा है : -: ब्रहमचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते । अर्थात् -- ब्रह्मचर्य और अहिंसा, शरीर का उत्तम तप है । 84. इस प्रकार अन्य ग्रन्थकारों ने भी ब्रहमचर्य को उत्तम तपमाना है ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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