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देवरिंदनमंसियपूइयं सव्वजगुत्तममंगलमग्गं । दुधरिसं गुणनायकमेक्कं मोक्खपहरसडिसगभूयं ॥३॥ ___ 'ब्रहमचर्य, पांच महाव्रत का मूल है अतः उत्तम व्रत है । अथवा पंच महाव्रत वाले साधुओं के उत्तम व्रतों का ब्रहमचर्य मूल है । ऐसे ही श्रावकों के सुव्रतों का भी ब्रहमचर्य मूल है । ब्रह चर्य, दोष रहित है, साधुजनों द्वारा भलीभांति पालन किया गया है, वैरानुबन्ध का अन्त करने वाला है और स्वयंभूरमण महोदधि के समान दुस्तर संसार से तरने का उपाय है ।
ब्रहमचर्य, तीर्थंकरों द्वारा सदुपदेशित है, उन्हीं के द्वारा इसके पालन का मार्ग बताया गया है और इसके उपदेश द्वारा नरक गति तथा तिर्यक-गति का मार्ग रोक कर सिद्ध-गति तथा विमानों के द्वार खोलने का पवित्र मार्ग बताया गया है।
___ यह ब्रहमचर्य देवेन्द्र और नरेन्द्रों से पूजित लोगों के लिए भी पूजनीय है, समस्त लोकों में सर्वोत्तम मंगल का मार्ग है। सब गुणों का अद्वितीय तथा सर्वश्रेष्ठ नायक है और मोक्ष-मार्ग का भूषण रूप है ।
४--ब्रह मचर्य ही तप है
मोक्ष के प्रधान साधन-तप में भी, ब्रह मचर्य को पहला स्थान है । जैन-शास्त्रों में ब्रहमचर्य सब से उत्तम तप माना गया है । इसका एक प्रमाण इस प्रकरण के