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( १३५ ) प्रधान अंग एवं धर्म का प्रधान रक्षक है । इसके लिये प्रश्न व्याकरण सूत्र में कहा है :
पउमसरतलागपालिभूय, भहासगढअरगतुवभूय, महानगरपागारक बाडफलिहभूय, रज्जु-पिणद्धो व्व इंदकेऊ, विसुद्धगेणगुण संपिणद्धं, जम्मि य भग्गम्मि होइ सहसा सव्व संभग्गमहियचुणियकुल्लियपलट्टपडियखंडियपरिसडियविणासिय विणयसीलतवनियमगुणसमूहं ।
'ब्रह्मचर्य, धर्म रूप पद्मसरोवर का पाल के समान रक्षक है । यह दया, क्षमा अादि गुणों का आधार-भूत एवं धर्म की शाखाओं का प्राधार-स्तम्भ है । ब्रहमचर्य, धर्म रूप महानगर का कोट है और धर्म रूप महानगर का प्रधान रक्षक-द्वार है । ब्रहमचर्य के खण्डित होने पर सभी प्रकार के धर्म, पहाड़ से गिरे हुए कच्चे घड़े के समान चूर-चूर हो जाते हैं ।' - ब्रहमचर्य, धर्म का कैसा आवश्यक अंग है, यह बताते हुए और ब्रहमचर्य की प्रशंसा करते हुए एक मुनि ने कहा है :पंच महव्वय-सुव्वयमूलं, समणमणाइल साहुसुविण्णं । वेरविरामण पज्जवसारणं सव्वसमुद्द महोदहितित्थं ॥१॥ तित्थकरेहि सुदेसिय मग्गं, नरगतिरिच्छविवज्जियंमग्गं । सव्वपवित्तसुनिम्मियसारं, सिद्धिविमाण-अवंगुयदारं।२॥